Monday, November 10, 2014

साधना !

एक साधु ने कहा
रख तू
मन का ख्याल भी
दे समय
कर निहाल इसे भी
सुन इसकी भी कुछ..

ये बाँट लेगा
दुःख तुम्हारे
रहेगा जो हर पल
साथ तुम्हारे

हो सके ..तो
कर साधना !
साध ले इसे
प्रभु भी सोचेंगे
करेंगे वास यही
चौराहे का मंदिर छोड़कर !

copyright @संतोष कुमार 'सिद्धार्थ ', 2014

Saturday, May 3, 2014

रिश्ता : मेरा - तुम्हारा

तू...
कविता है
गीत है
छंद है
भाव है
बसी रहती हो
शब्दों की लड़ियों में 
पुस्तकों के पन्नों में
मैं ...
आवरण हूँ 
पृष्ठभूमि हूँ
रक्षक हूँ
तुम्हारे सौंदर्य का...
तुम सहज स्वप्न हो
मैं यथार्थ हूँ..
बस ..
यही परिभाषा है
इतना सा है
मेरा - तुम्हारा रिश्ता !

Copyright@ संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१४.

Friday, March 28, 2014

खोज !

कभी - कभी
सत्य भी 
भाव रूप छोड़ कर
पात्र रूप में
खोज रहा होता है
हमें ..वैसे ही
जैसे हम उसे
और हम दोनों ही
आस-पास होते हैं
गुजर जातेहैं 
अगल-बगल से
बस ..पहचान नहीं पाते !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१४ 

Friday, January 10, 2014

खोज !

मैं
ढूंढ लेता हूँ
तुम्हे..
अक्सर ही
पर ..खुद को खो कर !

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१४