Friday, September 21, 2012

आजकल

आज कल
हम में से
बहुतेरे लोग 
हांफ रहे
काँप रहे
लगातार भाग रहे

दरिया में
पर्वत पर
दोजख में भी
हैं बार-बार झांक रहे

काट रहे
अपनों को
मुल्क भी
बाँट रहे

क्या सो गया 
जमीर उनका
तभी तो , देखें वे रोज
सपने भी
कालिख सने

क्यों बस उन्हें
चाहिए इस जहाँ में
ऐसा ..वैसा.. कैसा भी..
सिर्फ पैसा , पैसा और बस पैसा ही !

Copyright@संतोष कुमार  'सिद्धार्थ'

Monday, September 17, 2012

मैं और तुम

१.
तुम्हे पता है..?
मेरे बारे में
लोग कहते हैं
कि मैं,  मैं नहीं
कोई और होता हूँ
जब भी मैं
लिख रहा होता हूँ...
कोई गीत,
कोई कविता
तुम्हारे बारे में !

२.
मन मेरा
घूम आया
बन बंजारा
सात समुन्दर पार से
पर तुम मुझे
यही मिलीं
मेरे ही शहर में
पड़ोस की छत पर
भींगे -गीले बाल सुखाते हुए
मैं ही भोला था
समझ न सका 
समय पर .. तेरे इशारों को.

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.


Thursday, September 6, 2012

पुरुषार्थ

सैंकडो लोग तालियाँ बजा रहे थे
जोर - जोर से
नाम ले रहे थे ..
उस प्रतिभागी का
जो विजयी हुआ था
दौड की प्रतिस्पर्धा में
पर मैंने देखा..
लोगों के हुजूम से हटकर
एक और भी  प्रतिभागी था
अपने चेहरे पर
विजेता सरीखी मुस्कान ओढ़े हुए
आँखों में उसकी
जरा सा भी मलाल न था..
तकदीर से उसका
कोई भी सवाल न था
उसका पुरुषार्थ कहीं भी पीछे न था , 
वो हार कर भी
जीत गया था
प्रतिस्पर्धा को..
उसने पूरा किया था
माँ को दिया हुआ वचन
अपने स्वाभिमान का, 
आत्मविश्वास का प्रण
कि भले ही वो हारे या जीते
वो दौडेगा जरूर...
भले ही सफलता मंजिल
खड़ी रह जाये... उससे थोड़ी दूर.

Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ', २०१२.