Friday, December 16, 2011

प्रेमगीत


जब भी मैं 
लिखना चाहूँ 
कोई नया..प्रेमगीत
पूछता है 
हर अगला हरफ
मुझसे बार-बार
तेरी तस्वीर की तरफ
इशारे करके
इसमें तेरा नाम कहाँ है?
इसमें मेरा नाम कहाँ है?
Copyright@संतोष कुमार "सिद्धार्थ", २०११ 

15 comments:

  1. क्या बात है, बहुत सुंदर रचना !
    आभार !!

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  2. नाम आये न आये... प्रेम है अगर तो बनी रहेगी कविता!
    शुभकामनाएं!

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना ...

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  4. वाह ...बहुत बढि़या।

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  5. बहुत सुंदर कविता.

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  6. बहत सुंदर रचना..

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  7. बहुत बढ़िया... वाह!
    सादर.....

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  8. हर हरफ सच ही तो कहता है . बेहद खुबसूरत ..

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  9. क्या खूब कही ...बिना महबूबा के नाम के आपने हिम्मत कैसे की प्रेमगीत लिखने की..??

    सुन्दर नज्म

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  10. और मेरा नाम कहाँ है??

    सच ! सुन्दर नज्म.

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